आज की पेंटिंग के लिए हम शुक्रगुज़ार हैं जेंट्रम पॉल क्ली , बर्न से। उम्मीद है आपको पसंद आएगी
अपने आखरी वर्षों , 1938 से 1940 में क्ली ने जानवरों, मिथिक व् संकृत जीवों के कई चित्र बनाये। इस दौर में वे दुनिया, समाज व् प्रकृति के प्रति जो उनकी धारणा थी उसे चित्र में उतारना चाहते थे। क्ली इंसानों व् जानवरों के व्यवहार को बहुत गहराई से अध्ययन करते थे और उनका अध्ययन उनके द्वारा बनाये गए हज़ारों चित्रों से साफ़ झलकता है। उन्होंने इस दुनिया के व्यवहारिक तंत्र को पहचाना और उसे प्रस्तुत करने के प्रयास किये। वे इंसानों के सामने शीशा रख देना चाहते थे और दिखाना चाहते थे के कैसे हम इंसान इस दुनिया में कार्य करते हैं। उनके लिए इंसानों , जानवरों व् पौधों के बीच के अंतर बहुत महीन थे। उन्होंने अपने चित्रों में इंसानों का जानवर रूपांतरण व् जानवरों का इंसानी करण किया।
'उद्यमी जानवर' उनकी इस तकनीक का ही एक उदहारण है। 1940 , उनकी मृत्यु वाले वर्ष में उन्होंने इस जीव को पेंसिल व् रंग से इस चित्र में उतारा। इस दौर में उनके द्वारा बनाये गए चित्रों से साफ़ ज़ाहिर होता है के क्ली की चित्रमयी व्याकरण निम्न हो गयी और वे बच्चों जैसे चित्र बनाने लगे। उन्होंने सिर्फ अहम दृश्यि तत्वों का है जिस से मुख्य विशेषताएं ज़ाहिर हो सके। चित्रित जीव की बहरी रूपरेखा दिखाई गयी है। ऐसा क्या तत्व है जो इस जीव के चित्र को "उद्यमी जानवर " की उपाधि देता है ? क्ली जीव को ऐसे दर्शा कर क्या दिखाना चाहते हैं ? ये जीव गर्व भरी चाल भरे सीधा दिशा में चलता दिखाई देता है, और चेहरे पर भाव ऐसे हैं जैसे कोई उद्देश्य से चल रहा है। क्ली ने उसकी चाल दिखाने के लिए उसकी टांगों की दिशा ऐसे चित्रित की जिस से प्रतीत होता है के ये जानवर दाएं दिशा में बढ़ रहा है।
हम इंसान, जानवरों को उनके इधर उधर भटकने के स्वभाव से पहचानते हैं , जैसे की वे अपनी मूल प्रवृत्ति में ऐसा ही करते हैं। इसके विपरीत सीधा सोचने की प्रवृत्ति जैसे की इंसानों के लिए ही हो। क्ली की "उद्यमी जानवर" इंसानों के ऐसे स्वभाव पर किया गया व्यंग्य प्रतीत होता है।
P . S : पॉल क्ली के अलावा जानवरों को चित्रित करने काम , फ्रांज़ मार्क ने भी किया , एक कलाकार जिन्हे घोड़े बहुत पसंद थे।
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