31 अगस्त 1944 को जर्मन बम्ब पोलैंड के नोवे मिअस्तो (नया टाउन) पर गिरे और उन सब में से एक बम्ब संत मारिया जोज़ेफ़ काज़िमर्ज़ चर्च के तहखाने में जा गिरा और साथ ही वे लोग भी दफन हो गए जो वहां शरण लिए हुए थे। ध्वस्त हुई वस्तुओं में थे मारिया जोज़ेफ़ सबीएसका , नी वीसेल का मक़बरा (1685 - 1761), कोंस्तांती सोबिस्की की पत्नी (1680 -1726), राजा यान तीसरे सोबिस्की के बेटे (1629 -1696 ) | रोते हुए पुट्टो का सर भी उस मकबरे में से संरक्षित वस्तुओं में से एक है।
मारिया जोज़ेफ़ ने राज कुमार से शादी की, बावजूद इसके के लोगों का उनके प्रति नजरिया काफी नकारात्मक था , खासकर रानी मारिया काज़ीमीर का , इसी वजह से उनका विवाह 1708 में परिवार जनों को जानकारी हुए बगैर हुआ। शादी के कुछ ही हफ़्तों में कोंस्तांती ने अपनी पत्नी को छोड़ दिया और अपनी शादी को निरस्त करने का प्रयास भी किया। हालाँकि इन सब में काफी वर्ष लग गए और फलतः दोनों के बीच समझौता हो गया परन्तु कोंस्तांती की अगले वर्ष 1726 में मृत्यु हो गयी। विधवा मारिया ने सोबिस्की की जायदाद का ख्याल रखा जो उन्हें अपने मरहूम पति से विरासत में प्राप्त हुई थी। अपने अंतिम वर्षों में उन्होंने ज़मीन अपने भतीजे तेओडोर वेस्सेल को बेच दी और वॉरसॉ में सिस्टर ऑफ़ परपेचुअल अडोरेशन ऑफ़ ब्लेस्ड सेक्रामेंट के कान्वेंट में जा बसीं , जहाँ 1761 में उनकी मृत्यु हो गयी।
शाही परिवार से उनके नाते के कारण , शौर्यशास्त्र उनके मक़बरे की सजावट का एक मुख्य किरदार था - मार्बल का बेस जिस पर शिलालेख था और उसकी भव्यता बढ़ाते दो राज्य चिन्ह - जनीना (सोबिस्की परिवार का ) और रोगला (वेस्सेल परिवार का )|
उनके ऊपर एक मेडालियन था जिस पर मारिया जोज़ेफ़ का पर्श्वचित्र एक तरफ और पुट्टो दूसरी तरफ। पुट्टी , जो रेनेसांस दौर का एक मशहूर सजावट का माध्यम था और अक्सर व्यंजनाओं और मिथिक कला कार्यों में मस्ती और प्यार के प्रसंग को दर्शाने में इस्तेमाल किया जाता था। धार्मिक कलाकृत्यों में इसे प्रतीकवादी नमूने के तौर पर इस्तेमाल किया जाता था। मक़बरे पर एक पुट्टी ने दाएं हाथ में रुमाल पकड़ा है और वो अपने आंसू पोंछ रहा हैं , उसके बाएं हाथ में एक बुझी हुई मशाल है जो नीचे की तरफ दर्शाई गयी है - जो ढलती उम्र का एक प्रतीक है। पुट्टो के इस सर को म्यूजियम के संग्रह में देखा जा सकता है।
आज के इस मास्टरपीस के लिए हम शुक्रगुज़ार हैं वॉरसॉ म्यूजियम का। ये एक बहुत ही मुख्य प्रमाण है मेरे शहर का और उसके साथ जो कुछ हुआ दुसरे विश्व युद्ध में - जहाँ जनवरी 1945 में 85 से 90 प्रतिशत इमारतें ध्वस्त हो गयीं थी।
P. S. : "जंग , क्या इससे किसी का भला हुआ है ? नहीं, कतई नहीं "। युद्ध का विरोध करती एक कला की कहानी यहाँ पढ़ें .