रूसी कला का यह उत्कृष्ट चित्र अब रूसी राज्य संग्रहालय की प्रदर्शनी, इल्या रेपिन. कलाकार के जन्म की १७५वी सालगिरह को, का गहना है। यह प्रदर्शनी ९ मार्च, २०२० तक देखी जा सकती है। यदि आप मॉस्को में हैं, इसे ज़रूर देखिएगा!
१८६८ में, संत पीटर्सबर्ग की नेवा नदी पर नौकायान करते समय, इल्या रेपिन को बजरा खींचते हुए आदमियों की पहली झलक मिली। वह तस्मों से बंधे इन बदकिस्मत लोगों को देख दंग रह गए जिनके विपरीत तटबंध पर सैर करती सुदर्शन जनता थी। दो दफा वोल्गा जाने और कुछ बजरा खींचनेवालों से परिचित होने के पश्चात उन्होंने इस महान चित्रफलक की रचना की। रुसी चित्रकारी के प्रमुख उदाहरणों में से एक, वोल्गा पर बजरा खींचने वाले ने शैली कला के इतिहास में एक नए दौर की शुरुआत की। रेपिन ने असली ज़िन्दगी में अक्सर देखे जाने वाले एक दृश्य को एक विस्तीर्ण व्यापकत्व में उन्नत कर दिया, ज़िन्दगी के तत्क्षण प्रभाव की ताज़गी व् वोल्गा के परिदृश्य और धुप के भाव को बिना खोए। बजरा खींचनेवालों की एक टोली इस विशाल नदी के रेतीले तट पर धीमे से चल रही है। यद्यपि वे कई सौ मील चल चुके हैं, उनके दूरस्थ पथ का अभी भी कोई अंत नहीं है। रेपिन अपने नायको से सहानभूति तो जताते ही हैं, उनकी आत्मिक शक्ति और धैर्य को सराहते भी हैं। उस्ताद की सजीव और स्मरणीय छवियाँ असली खींचनेवालो की वोल्गा पर बनायी तस्वीरों पर आधारित हैं। वोल्गा पर बजरा खींचने वाले को १८७३ में विएन्ना की विश्व प्रदर्शनी में दिखाए जाने पर महाद्वीपीय प्रसिद्धि हासिल हुई और साम्राजी कला अकादमी ने रेपिन को अभिव्यक्ति के लिए दिए जाने वाले विजई - ल ब्रुन पदक से सम्मानित किया।
उपलेख - कॉन्स्टन्टिन कोरोविन की नज़रों से रूसी जाड़ा यहाँ देखें!